लोकसभा चुनाव में नेताओं के प्रचंड घमंड व निजी स्वार्थ ने तोड़ा जीत का गुरूर



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*कार्यकर्ताओं से बेरुखी और छुट भैइये नेताओं की अनदेखी बनी हार का कारण*

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*घर के भइ्ईया मठा को तरसे मदन मारगये जारी - असली वजह वना रूखापन होगई हार करारी*

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*विशन पाल सिंह चौहान (प्रधान संपादक) अलार्म इण्डिया न्यूज*

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चुनाव चुनाव प्रक्रिया के समापन उपरांत केंद्र में मोदी सरकार सरकार का शपथ ग्रहण समारोह भव्य तरीके से संपन्न होने के बाद मंत्रालयों का बंटवारा भी भली भांति हो गया है और सरकारी कार्य रफ्तार की ओर अग्रसर है। लेकिन अभी भी हार की मार से पीड़ित संबंधित प्रत्याशियों के घाव पूरी तरह से भर नहीं पाए हैं। तथा उनकी जख्मों पर अभी और कुछ दिनों तक मरहम पट्टी होना बहुत जरूरी है।


निकट भविष्य में फिलहाल चुनाव की जीत हार का मंथन होता रहेगा। क्योंकि महाभारत युद्ध के बाद से लेकर आज तक, देश के अंदर और विदेश से होने वाले युद्धों में पराजित होने का मंथन उल्लेखनीय रहा है। 


परन्तु उन युद्धों की अपेक्षा इस लोकसभा चुनावों में उपेक्षित, पीड़ित, अनदेखी और बेरुखी के शिकार पार्टी कार्यकर्ताओं एवं छोटे भैइये नेताओं की लंबी फेहरिस्त है जिनकी जीत हार के खेल में महिती भूमिका देखने को मिली है। इसी के साथ पिछले दिनों यूपी में केंद्रीय हस्तक्षेप की विसंगतियां ने भी कुछ लोगों को हार मोहरा बनाने में अहम भूमिका अदा की है। वही योगी मंत्रमंडल की आपसी गुटवाजी और धमा चौकड़ी ने भी "मियां की जूती और मियां का सर" वाली कहावत चरितार्थ करते हुए अपने ही सिंहासन में सेंदमारी का जोखिम खुल्लम-खुल्ला उठाने से कतई परहेज नहीं किया है।


यह भी बताते चलें कि कुछ प्रत्याशियों द्वारा तीसरी बार आसानी से चुनाव जीतने के सपने जिस बुरी तरह से धूल धूसरित हुए हैं उसमें उन हारे हुए प्रत्याशियों का भी दोष काम नहीं है। यही हारे हुए लोग इससे पूर्व जब माननीय हुआ करते थे तो इनके द्वारा ग्रामीण स्थल की छोटे-छोटे कार्यकर्ताओं की अनदेखी करना और उनसे उपेक्षितों की तरह व्यवहार करना मामूली बात हुआ करती थी, इसी तरह कुछ छुट भैइये वह पदाधिकारी जो बूथ लेवल से लेकर मंडल लेवल तक के पदाधिकारी पदों पर कार्यरत थे जो अपनी जान लगाकर चुनाव के दौरान जीत के प्रति समर्पित रहते थे। 


इस तरह के कार्यकर्ता और नेताओं की मुफ्त में मिली वफादारी को माननीयों ने कोई स्थान नहीं दिया। और जीत के बाद अपनी - अपनी विकास निधि से कराए गए करोड़ों रुपए के विकास कार्यों को सपा समर्पित ठेकेदारों के माध्यमों से कराकर कमीशन खोरी में बंदरबांट की तर्ज पर आधा-आधा खाने में मस्त रहे। पार्टी के प्रति समर्पित छोटे छोटे लेकिन अति महत्वपूर्ण कार्यकर्ता और नेता केवल चरण वंदना और पार्टी के प्रचार प्रसार, सदस्य संख्या बढ़ाने जैसे अनेकों कार्यों को करने की सिद्धांतवादी घुटी की दो बंदे पीकर अपना जीवन यापन करने पर मजबूर रखे गये। कभी किसी पदाधिकारी को प्रशासनिक उत्पीड़न में भी पार्टी के सिद्धांत और संविधान का झुनझुना हाथ में थमते हुए माननीयों द्वारा कोई राहत उपलब्ध नहीं कराई गई।


कुछ विधानसभा क्षेत्र के माननीयों ने तो सीमा तोड़कर पार्टी के ही लोगों का दोहन शुरू कर दिया,और उनमें गुटबाजी कराकर संघर्ष कराते रहे तथा स्वयं "अंधों में काना राजा" की भूमिका का निर्वहन करते हुए मौज मस्ती करने से बाज नहीं आये, पूरे विधानसभा क्षेत्र में अपने चहेते गुंडो के जरिए लूट मार करना, अवैध कब्जे कराना, तथा पीड़ितों को ही थाने में बंद कर देने के कारनामों को अंजाम देते रहे। तथा विभिन्न हथकण्डों के जरिए करोड़ों की संपत्ति अर्जित करने में जुटे रहे।और अब बड़े माननीय के चुनाव हारते ही स्वयं हार की जिम्मेवारी से बचने के तथाकथित रास्ते तलासते हुए नजर आ रहे हैं। 

बड़े माननीय ने जिन छोटे माननीय सब पर अति विश्वास किया था उन्होंने ही चुनावी नैया को डुबो दिया। यह चर्चा कहीं भी और कभी भी किसी के भी मुंह से सुनी जा सकती है।


इस तरह से लोकसभा चुनाव में संबंधित नेताओं के प्रचंड घमंड व निजी स्वार्थ ने जीत का गुरूर तोड़ कर रख दिया है तथा कर्ताओं से बेरुखी और छुट भैइये नेताओं की अनदेखी हार का कारण नजर आ रही है।

इसी क्रम में निम्नलिखित युक्ति बाली कहावत भी हार के लिए कम जिम्मेदार नहीं है। *घर के भइ्ईया मठा को तरसे मदन मारगये जारी - असली वजह वना रूखापन होगई हार करारी*


यूपी के चुनाव में भाजपा की करारी हार को लेकर केंद्र भी कम जिम्मेदार नहीं है, केंद्रीय नेतृत्व ने अपने मनमर्जी से उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल में कई मंत्रियों को अपने तरीके से स्थान दिलाकर जबरदस्ती की, और फिर वही "चहोरे" हुए लोग प्रदेश के पार्टी हित में कार्य करने के बजाय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कमजोर करने के लिए दिन रात षड्यंत्र में लग रहे। और योगी जी को एन - केन - प्रकारेण किसी भी तरह से मुख्यमंत्री के पद से हटाकर खुद मुख्यमंत्री के ओहदा पर विराजमान होने के सपने में डूबे रहे। तथा चुनाव जीतने की ओर उनकी मानसिकता बहुत कमजोर दृष्टिगोचर हुई है। 


इस दौरान यूपी के सिंहासन से योगी को हटाने की हवा को तब और ज्यादा ताकत मिल गई जब विपक्ष ने कई बार प्रचारित किया कि चुनाव के तत्काल बाद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाएगा। लेकिन इस कुप्रचार के संबंध में ना तो देश के प्रधानमंत्री मोदी और ना ही गृहमंत्री अमित शाह ने कभी भी स्थिति स्पष्ट की, इस वजह से भी दुविधा जनक परिस्थितियों का जन्म हुआ, और प्रदेश में भाजपा को करारी हार का मुंह देखना पड़ा। फिलहाल केंद्र में भाजपा की सरकार बैसाखियों के सहारे बन चुकी है। लेकिन निकट भविष्य में पार्टी के छोटे-छोटे कार्यकर्ताओं यहां तक मतदाताओं तक का ध्यान रखना होगा तभी विजय यात्रा सफलता की मंजिल छू सकेगी। लोकसभा का यह चुनाव जनप्रतिनिधियों के लिए सबक देने वाला उदाहरण प्रस्तुत कर गया है, जिसे भविष्य में आत्मसात करना ही होगा।

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